संविधान को लागू हुए 75 वर्ष हो गये, लेकिन अभी तक लोगों को अपने अधिकार नहीं मिले

 

संविधान को लागू हुए 75 वर्ष हो गये, लेकिन अभी तक लोगों को अपने अधिकार नहीं मिले

फाईल फोटो 

संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर द्वारा लिखित संविधान को देश में लागू हुए 75 वर्ष बीत गए। हर वर्ष की भांति इस वर्ष फिर 26 जनवरी 2025 को देश ने क्षेत्र में गणतंत्र दिवस को हर्षोल्लास के साथ मनाया। देश में 26 जनवरी 1950 को जब संविधान को लागू किया गया तो माना गया कि देश में लोगों को अपने अधिकार आसानी से मिल जाएंगे और स्वतंत्र भारत में अब शासन पूरी तरह लागू हुए लिखित संविधान के अनुसार चलाया जाएगा। लेकिन जैसे-जैसे समय व्यतीत होता गया देश की सरकार जनता के हाथ में न होकर कुछ लोगों और पार्टियों के हाथों में जाने लगी सैकड़ो वर्षों से गुलाम रहे देशवासियों के सपने चकनाचूर होने लगे। लोगों का शिक्षा का अनिवार्य अधिकार, आवास का अधिकार और रोटी कपड़े का अधिकार, रोजगार का अधिकार, संविधान में लिखित में होने के बावजूद नहीं मिला। देश में समानता के लिए योजना बनाई गई, लेकिन असमानता बढ़ती गई। एक तरफ लोगों का एक वर्ग बड़ी ऊंची गगनचुंबी इमारत में रहता है तो दूसरी तरफ सिर से ढकने के लिए झोपड़ी और कब्जे मकान तक नसीब में नहीं है। एक तरफ धनाढ्य लोगों के बच्चे विदेश में एवं देश के महंगे स्कूलों-कॉलेजों में पढ़ते हैं, तो दूसरी तरफ गरीब लोगों के बच्चों को पढ़ने के लिए किताबें तक के पैसे नहीं है। वैसे तो सरकारी स्कूलों में फ्री शिक्षा मिलती है, लेकिन सरकारी स्कूलों की संख्या काफी कम है। इसी तरह देश में एक तरफ लोगों के पास करोड़ों-अरबों रुपए की पूंजी है, तो दूसरी तरफ रोटी कपड़े के लिए पर्याप्त पैसे नहीं है। युवाओं को रोजगार नहीं मिल पा रहा है। रोजगार के अभाव में युवा क्राइम की तरफ बढ़ रहे हैं. नशा युवाओं को जकड़ रहा है, देश में जातिवाद और धार्मिक उन्माद बढ़ रहा है। जबकि संविधान के अनुसार देश का धर्म निरपेक्षता का व्यवहार है। लेकिन यह संविधान के पन्नों तक सीमित दिखाई दे रहा है। संविधान एवं सर्वोच्च न्यायालय के नियम बनाने के बावजूद धर्म के आधार पर मस्जिदों और दरगाहों में मंदिर तलाशी जा रहे हैं। न्यायालयों में निष्पक्षता की कमी दिखाई दे रही है। कुछ न्यायधीश खुलकर एक धर्म की बात कर रहे हैं और न्यायालय के निर्णय बहुसंख्यकों पक्ष में करने की बात कर रहे हैं एक वर्ग के युवा वर्षों से जेल में बंद है, लेकिन न्याययालयों से उनकी जमानत नहीं मिल पा रही है। जबकि उनसे ज्यादा गंभीर मुकदमों में बंद आरोपियों को फटाफट जमानत मिल रही है। देश में छुआछूत के नाम पर देश के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी दलितों को उच्च वर्ग के कुओं से पानी नहीं पीने दिया जाता और साथ में चारपाई पर बराबर नहीं बैठने दिया जाता है। ऊंच नीच की आए दिन घटनाएं होती है लेकिन अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई नहीं होती है। देश में आरक्षण, छुआछूत एवं आर्थिक कमजोरी के अनुसार दिया गया था और संविधान में छुआछूत को समूल रूप से समाप्त करने के प्रयास करने के लिए कहा गया था लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। इसी तरह देश में नाम का जनता का शासन है लेकिन जनता की समस्याओं पर कितना ध्यान दिया जाता है सभी जानते है प्रजातंत्र चुनाव से सरकार बनती है। भारत भी एक प्रजातांत्रिक देश है।लेकिन चुनाव में धन-बल, बाहुबल, प्रलोभन एवं मशीनीकरण का प्रभाव दिखाई दे रहा है, जबकि औपचारिकताएं प्रजातंत्र के तरीकों की कि जाती हैं। देश में सच एवं अधिकारों के लिए बोलने वालों पर मुकदमे थोपे जा रहे हैं और जेल में डाला जा रहा है। ऐसे में देश का 76वां गणतंत्र दिवस हर्षोउल्लास एवं धूमधाम से मनाना उन लोगों के लिए सार्थक नहीं कहा जा सकता है जिनके पास रहने के लिए मकान नहीं है, शिक्षा नहीं है, रोजगार नहीं है और जिन्हें अधिकारों के लिए बोलने से रोका जा रहा है।


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